#साधना
मनुष्य योनी मैं हमेशा से समस्या बानी रहती है , पर जिससे जो पार पा लेता है उसे ही साधना का आभास होता है।
यह बात मत भूलिए कि आप सब साधक है। क्योंकि मनुष्य योनि में जन्म होते ही अन्य प्राणियों से अधिक विशिष्टता तो आपमें आ ही चुकी है।
बस आवश्यकता इस बात की है कि आप सृष्टि का भला करने के लिए कितने सजग हैं।
जो जितनी मात्रा में सजग होकर सृष्टि हित करता है वही उसकी साधना है।
उस आर्जित स्तर के अनुसार ही एक दैवीय बल उत्पन्न होकर आपकी जमा पूंजी के रूप में आपका कार्य करता है।
सृष्टि हित करने में किस कार्य से कितनी मात्रा में दैवीय बल उत्पन्न होता है यह अनुसंधान पाना जरा मुश्किल है।
क्योंकि एक अमीर आदमी द्वारा सौ लोगों को भोजन कराने की तुलना में किसी गरीब व्यक्ति द्वारा कुछ चींटियों के लिए डाला गया आटा भी हो सकता है अधिक पुण्यदाई हो।
सेवा और सेवाभाव:-
अतः सृष्टि हित में बल, सामर्थ्य बुद्धि की अपेक्षा मनोयोग और अपनी सामर्थ्य अर्थात उस काम को आप कितनी प्रसन्नता और मन से कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है।
अमीर या बलवान का दायित्व निर्धन और बलहीनों से कहीं अधिक बनता है।
एक जरुरतमंद को सीट देने में एक बलवान और कमजोर व्यक्ति दोनों आगे आएं तो कमजोर को अधिक पुण्य मिलता है। क्योंकि बलिष्ठ को बल भगवान् ने अधिक दिया है, परन्तु कमजोर की हिम्मत देखिए और आप ही फ़ैसला करिए।
हर काम को फायदे से न जोड़कर सृष्टि के कायदे से जोड़ना चाहिए।
आप अपने बच्चे को आइसक्रीम दिलवा रहे हैं तो गौर कीजिए उस बच्चे की ओर जो आपसे मांग नहीं रहा है परन्तु आपकी ओर आशान्वित दृष्टि से देख रहा है।
उसको भी ऐन मौके पर यदि आप आईसक्रीम दिला देते हैं तो उसका फल एक विधिपूर्वक किए गए यज्ञ के समान फलदाई हो जाता है।
क्योंकि यहां छोटे बच्चे में बैठा परमात्मा ही आपको देख रहा है कि आप इस मौके पर कैसा व्यवहार बरतेंगे।
ऐसे अनेक छोटे मौके आते हैं जो फल के हिसाब से बहुत बड़े होते हैं।
इनका फल भी आपको ऐसे मिलता है --
१. गर्मी की चिलचिलाती धूप में आप पर बादल का टुकड़ा छांव कर लेता है।
२.बारिश की बूंदें पड़ने लगती हैं,आप रस्ते में होते हैं लेकिन आपके गन्तव्य पर पहुंचने तक बूंदें हल्की रहती हैं और पहुंचते ही तेज हो जाती है।
३.अचानक छोटी/बड़ी समस्या से आपको आकर कोई अचानक निकाल देता है।
बहुत गहरे अनुभव आपको बता रहे हैं, आप भी गौर करें।
कुछ कहते हैं --
वह महात्मा ऐसा था, वैसा था , जो कह देता था हो जाता था।
सच्चा हितकारी बने:-
मैं कहता हूं --
अरे भाई, वह सच्चा सृष्टि हित साधक था। सृष्टि परमात्मा की फुलवारी है,जो इस फुलवारी का ध्यान रखेगा, परमात्मा उसको अपना विश्वासपात्र मानकर उसे फुलवारी के पेड़ पौधों को लगाने, संवारने काट छांट का अधिकार दे देता है।
मुनीम यदि विश्वासपात्र है तो सेठ उसे धन,खजाने आदि के अधिकार दे देता है।
यह सब साधना के स्तर हैं।
जो भोजन करते समय उपस्थित अन्य कीट, पतंग,प्राणियों का पेट भरता है चाहे अपना पेट थोड़ा खाली ही रहे/ दूसरी तरफ मात्र अपना पेट भरने वाला..
इन दोनों में बहुत अंतर है।
आप पहचानिए, और अपनी साधना का स्तर बढ़ाईये।
यह शुरुआत अभी और जहां खड़े हैं वहीं से शुरू करें।
परमात्मा की फुलवारी इस सृष्टि के संरक्षण,पोषण, विकास में सहयोग करें।
यह सृष्टि ही आदिशक्ति है।
इसकी नवधा भक्ति ही नवरात्र सेवा है।
अतः हमें हमेसा दूसरों के हितों की रक्षा के लिये तत्यपर्य रहना होगा।
जय श्री कृष्णा👍
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