#साधना
# साधना_के_स्तर:- मनुष्य योनी मैं हमेशा से समस्या बानी रहती है , पर जिससे जो पार पा लेता है उसे ही साधना का आभास होता है। यह बात मत भूलिए कि आप सब साधक है। क्योंकि मनुष्य योनि में जन्म होते ही अन्य प्राणियों से अधिक विशिष्टता तो आपमें आ ही चुकी है। बस आवश्यकता इस बात की है कि आप सृष्टि का भला करने के लिए कितने सजग हैं। जो जितनी मात्रा में सजग होकर सृष्टि हित करता है वही उसकी साधना है। उस आर्जित स्तर के अनुसार ही एक दैवीय बल उत्पन्न होकर आपकी जमा पूंजी के रूप में आपका कार्य करता है। सृष्टि हित करने में किस कार्य से कितनी मात्रा में दैवीय बल उत्पन्न होता है यह अनुसंधान पाना जरा मुश्किल है। क्योंकि एक अमीर आदमी द्वारा सौ लोगों को भोजन कराने की तुलना में किसी गरीब व्यक्ति द्वारा कुछ चींटियों के लिए डाला गया आटा भी हो सकता है अधिक पुण्यदाई हो। सेवा और सेवाभाव:- अतः सृष्टि हित में बल, सामर्थ्य बुद्धि की अपेक्षा मनोयोग और अपनी सामर्थ्य अर्थात उस काम को आप कितनी प्रसन्नता और मन से कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है। अमीर या बलवान का दायित्व निर्धन और बलहीनों से कहीं अधिक बनता है। एक जरुरत...